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मिले 15 सौ करोड़ जरूरत है 15 हजार करोड़ की

हिमाचल को मोदी से बड़ी राहत राशि की उम्‍मीद...

विशेष संवाददाता

     शिमला : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश का दौरा किया और 1500 करोड़ की राहत राशि देने का एलान कर चले गए। जबकि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू का आंकलन 15,000 करोड़ रुपए का है। ऐसे में केन्द्र सरकार के 1500 करोड़ से क्या राहत प्रदान की जा सकेगी इसका अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है।
     पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया और कांगड़ा में प्रदेश के नेताओं से मुलाकात करके 1500 करोड़ की राशि देने का आश्वासन दिया। अब यह पैसा केन्द्र से कब मिलेगा यह तो तभी कहा जा सकता है जब यह राहत राशि प्रदेश सरकार के खाते में पहुंच जाएगी। यह भी सभी जानते हैं कि जो राहत राशि प्रधानमंत्री ने घोषित की है वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है।
     हिमाचल प्रदेश को मोदी से बड़ी राहत राशि मिलने की उम्मीद अभी भी है। मोदी से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने नई दिल्ली में 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष डा. अरविंद पनगढ़िया से भेंट कर हिमाचल की वित्तीय स्थिति से संबंधित विषयों की जानकारी विस्तारपूर्वक दे दी है। उन्होंने कहा है कि हिमाचल पिछले तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसमें अनगिनत बहुमूल्य जानें गईं हैं तथा प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। पर्यावरण और बुनियादी ढांचे को हुआ नुकसान अत्यधिक गंभीर है।
     वह आगे कहते हैं कि सर्वाच्च न्यायालय ने भी जुलाई 2025 में यह टिप्पणी की थी कि राजस्व अर्जित करने के लिए पर्यावरण और प्रकृति से समझौता नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे पूरे प्रदेश को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। सीएम सुक्खू ने बताया है कि एक पहाड़ी राज्य होने के कारण हिमाचल की राजस्व वृद्धि की अपनी सीमाएं हैं, इसके बावजूद सरकार को संवैधानिक दायित्वों के तहत आवश्यक जन सेवाएं देनी पड़ती हैं। प्रदेश का 67 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र वन भूमि होने के कारण राज्य के पास सीमित विकल्प बचे हैं। मुख्यमंत्री ने आग्रह किया कि हिमाचल प्रदेश जैसे राजस्व घाटे वाले पहाड़ी राज्यों के लिए राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) जारी रहनी चाहिए।
     उन्होंने आरडीजी को कम नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा कि इसे राज्य की आय व्यय की यथार्थपरक स्थिति के आधार पर तय किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने आरडीजी की न्यूनतम राशि 10,000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष निर्धारित करने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा कि 15वें वित्त आयोग द्वारा तैयार किए गए आपदा जोखिम सूचकांक (डीआरआई) को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है, क्योंकि आपदा की दृष्टि से हिमालयी क्षेत्र की शेष भारत से तुलना नहीं की जा सकती। एक समान प्रारूप में तैयार किया गया सूचकांक भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटने, जंगल की आग और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड जैसी आपदाओं को शामिल नहीं करता, जबकि हाल के वर्षों में इन खतरों की आवृत्ति और प्रभाव पर्वतीय क्षेत्रों में काफी बढ़ा है। कम डीआरआई होने के कारण हिमाचल को 15वें वित्तायोग से आपदा राहत के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं मिले, जबकि प्रदेश में आपदाओं को असर कहीं अधिक रहा। उन्होंने पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अलग से डीआरआई तैयार करने का आग्रह किया।
     मुख्यमंत्री सुक्खू की इस भेंट के बाद इतना तो कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री द्वारा की गई राहत राशि की घोषणा बाढ़ पीड़ितों को हुए नुक्सान के सामने कुछ भी नहीं है। प्रदेश को कहीं अधिक राहत राशि की जरूरत है। हलांकि प्रदेश से बाहर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने अपने सीमित साधनों से कहीं अधिक राहत राशि प्रदेश सरकार को दी है। यह बात भी तय है कि केन्द्र की मदद के बिना प्रदेश को इस बाढ़ संकट से बाहर निकालना आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री ने 16वें वित्त आयोग के समक्ष जो बातें विस्तार से रखी हैं यदि उसे केन्द्र सरकार मंजूर कर लेती है तो प्रदेश के लोगों तक राहत पहुंचाना कुछ आसान हो जाएगा।
     पिछले लगातार दो वर्षों से जिस प्रकार की प्राकृतिक आपदा हिमाचल में आई है वह भविष्य में काफी डराने वाली है। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि अगले वर्ष की बरसात में हिमाचल प्रदेश को कोई नुक्सान नहीं होगा। इसके लिए प्रदेश सरकार को अभी से योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ना होगा। फिलहाल बाढ़ पीडितों को मदद जारी है।

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