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हिन्‍दी साप्‍ताहिक समाचार पत्र

Hindi Weekly News Paper of India

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शूलिनी मेला विशेषांक 2025

प्रशासन की भूमिका कम होनी चाहिए शूलिनी मेले में

     शूलिनी मेले में जिला प्रशासन की भूमिका को कम किया जाना जरूरी हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकारी बाहर से नौकरी करने आते हैं और उन्हें मेले की परंपराओं का कोई ज्ञान नहीं होता है। सत्तारूढ़ दल के स्थानीय नेता जैसा चाहते हैं, वैसा वह करते जाते हैं। इससे मेले पर कई प्रकार की कुरीतियों के दाग भी लगने लगे हैं। जिला प्रशासन मां शूलिनी के मेले में सिर्फ समर फैस्टिबल का आयोजन करवाता है। जबकि मां शूलिनी के मेले में मां शूलिनी की पालकी निकालना ही असल में शूलिनी मेला कहलाता है। मां शूलिनी की पालकी निकालने की परंपरा शुरू से ही स्थानीय लोगों की जिम्मेदारी रही है। इस पर जो खर्च आता है उसे स्थानीय लोग ही वहन कर लेते थे और शायद अब भी चंदा एकत्र करके इसे आयोजित करने की क्षमता रखते हैं। जिला प्रशासन का मंदिर में दखल ट्रस्ट बनाकर सरकार ने कर दिया है, यह अलग विषय है। मेले से जिला प्रशासन को दूरी इसलिए भी बना लेनी चाहिए क्योंकि अब इस मेले के नाम पर जो पैसा एकत्र किया जाता है उस पर लोगों को संशय बना रहता है। साथ ही इसे जिस प्रकार से मां शूलिनी के नाम पर खर्च किया जाता है वह भी सदा संदेह के घेरे में ही रहता है।          जारी...

 

मेले में व्‍यापार का बुरा हाल

संजय हिंदवान

     मेले हमेशा व्यापारियों और दुकानदारों के लिए खुशी लेकर आते हैं। दुकानदारों की इच्छा रहती है कि मेले में वह भीड़-भाड़ का लाभ उठाकर अच्छा व्यवसाय करेंगे। लेकिन शूलिनी मेला अब व्यापारियों के लिए खुशी लेकर नहीं आता है। मेले के दौरान रेहड़ी फड़ही और स्टाल वाले तो खूब पैसा कमा कर चले जाते हैं और लाखों रुपए किराए की दुकान चलाने वाले मुंह ताकते रह जाते हैं। शूलिनी मेला सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं है। कई दशकों से सोलन और आसपास के लोग शूलिनी मेला में कई तरह की खरीददारी करते हैं। ये भी कहा जा सकता है कि अब तो मई तक सोलन नगर और इसके आसपास के क्षेत्रों में सर्दी का मौसम रहता है। इसलिए गर्मियों के वरिधानों की खरीददारी शूलिनी मेले में ही होती है। इससे पहले भी कुछ मेले शूलिनी मेले से पहले आसपास के इलाकों में आयोजित होते हैं। अब तो इनमें भी जमकर खरीददारी होती है। शूलिनी मेले से पहले भी ठोडो ग्राउंड में अब व्यापारिक मेले आयोजित होने लगे हैं। इसमें भी खूब माल बाहर से लाकर और स्टाल लगाकर व्यापारी बेच जाते हैं। वैसे भी सोलन के लोग आन लाइन शॉपिग और चंडीगढ़ से खरीददारी करके स्थानीय व्यापारियों की कमर तोड़ चुके हैं। इस प्रतिस्पर्धा में स्थानीय व्यापारियों को भारी मशक्त करनी पड़ रही है। .       .जारी..

 

हर साल आषाढ़ में लगता है शूलिनी मेला

     सोलन का तीन दिवसीय ऐतिहासिक शूलिनी मेला हर साल आषाढ़ (जून) माह में लगता है। पूर्व बघाट (सोलन) रियासत के शाही परिवार की अधिष्ठात्री देवी मां शूलिनी के प्रति सम्मान, श्रद्धा व आस्था जताने के लिए यह सालाना आयोजन होता है। मेले के पहले रोज शूलिनी माता सोलन गांव से सोलन नगर में अपनी बड़ी बहन दुर्गा मात से उनके गंज बाजार स्थित मंदिर में मिलने के लिए दो दिन के प्रवास के लिए आती है। बड़े-बूढ़ों के मुताबिक मां शूलिनी के नाम पर इस नगर का नाम ‘सोलन’ पड़ा था। मां शूलिनी भगवती का ही एक रूप माना जाता है। बघाट रियासत के शासक पंवार वंशज राजपूत शक्ति पूजा में बहुत आस्था रखते थे। अपनी कुलदेवी के प्रति उन्हें अटूट श्रद्धा थी। इसलिए सदियों पूर्व बघाट के अस्तित्व में आने के साथ ही इस मेले का आयोजन शुरू हो गया। कहते हैं यहां के राजा विक्टोरिया दलीप सिंह और कंवर दुर्गा सिंह सभी धर्मों का आदर करते थे और हिन्दु धर्म के पर्वों पर सभी धर्म के लोगों को आमंत्रित भी करते थे। यही परंपरा आज भी कायम है। आजादी के समय जब देश भर में हिन्दु और मुस्लिम समुदाय के लोग एक दूसरे का कत्ल करने पर उतारू थे। उस समय कंवर दुर्गा सिंह ने टैंक रोड स्थित लड़कों के स्कूल में मुसलमानों के लिए राहत शिविर लगाया था। जिससे यहां रहने वाले कई मुसलमानों की जान बचाई गई थी। कहने का अर्थ यह है कि सोलन नगर की परंपरा में सभी को सम्मान देने का भाव सदियों पुराना है।       जारी...

 

मां शूलिनी को जानने की जिज्ञासा

     शूलिनी के मेले को देखने हजारों लोग दूर दूर से सोलन नगर में आते हैं। पूरे नगर में मेले के दौरान खानपान के निशुल्क भंडारे लगाए जाते हैं। तीन दिन तक चलने वाला यह मेला पूरे भारत वर्ष में इसलिए भी प्रसिद्धि प्राप्त करता जा रहा है कि जहां शिमला और आसापास के क्षेत्र पर्यटकों को आकर्षित करने में लगे रहते हैं वहीं सोलन नगर में मेले के तीनों दिन दिन रात निशुल्क खानपान के भंडारे लगे रहते हैं। पूरा नगर मेले के अदभुत रंग में रंगा रहता है। इन तीन दिनों में रात दिन बाजारों में चहल पहल रहती है। यहां आए दर्शकों और श्रद्धालुओं में यह जानने की जिज्ञासा बनी रहती है कि आखिर मां शूलिनी का इतिहास क्या है और यहां के लोग इस मेले को मनाने के लिए इतने उत्सुक क्यों रहते हैं। मां शूलिनी जिसे मां दुर्गा का रूप माना जाता है, का हमारे शास्त्रों में क्या स्थान है। दुर्गा सत्पती में महार्षि मार्कण्डेय मां दुर्गा का मां काली के रूप में प्रकट हो जाने का वर्णन करते हैं। उसी में जब महिषासुर राक्षस और उसकी राक्षसी सेना का शूल हाथ में लिए मां काली वद्य करती है तो मां काली के रूप में उतरी मां दुर्गा को उस समय मां शूलिनी भी कहा गया। क्योंकि वह शूल हाथ में लेकर राक्षसों का वद्य करती है। दुर्गा सतप्ती में महार्षि उस दृश्य का वर्णन करते हैं और बताते हैं कि मां शूलिनी महिषासुर संग्राम में कैसे दिखती थी।      जारी...

 

शिमला हिल्‍स का सबसे बड़ा है शूलिनी मेला

     मां शूलिनी के नाम से सोलन नगर में हर वर्ष मनाया जाने वाला तीन दिवसीय मेला शिमला हिल्स क्षेत्र का सबसे बड़ा पर्व बनाता जा रहा है। यूं तो इस क्षेत्र में दीपावली, होली और अन्य पर्व भी बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं लेकिन शूलिनी मेला यहां का ऐसा पर्व है जिसे सभी लोग पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस मेले के वृहृद बनते जाने का सबसे बड़ा कारण मैदानी इलाकों में तपती गर्मी भी है। पिछले दो दशकों से यह बात महसूस की जा रही है कि मैदानी इलाकों में जून माह के मौसम में सूर्य देव आग उगलते हैं। ऐसे में पहाड़ों की ठंडी वादियों में देश के हार कोने में रहने वाला व्यक्ति लालालियत रहता है। उस पर यदि उसे मनोरंजन से ओतप्रोत मेले में जाने का सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो वह अपने आपको धन्य समझता है। चंडीगढ़ और शिमला नगर के रास्ते पर पड़ने वाला सोलन नगर यहां आने वाले हर शक्स को यहां कुछ दिन बिताने पर मजबूर कर देता है। शिमला हिल्स के नाम से विख्यात यह क्षेत्र पहाड़ों की गोद में बसा है। कहते हैं जून माह में यह नगर किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता है। शाम को चलने वाली शीतल हवाएं हर किसी को त्रिप्त कर देती हैं। जब लगभग पूरा देश सूर्य देवता के प्रचंड ताप में झुलस रहा होता है तो शिमला हिल्स की याद देश विदेश के कोने कोने में रहने वाले व्यक्ति के मन में शिमला की याद को ताजा कर देती है।        जारी...

 

रंगबिरंगी रौशनी से सराबोर नगर बता देता है शूलिनी मेला आ गया

     नगर में रंगबिरंगी रौशनी यहां आने वाले को इस बात का एहसाहस करवा देती है कि यहां कोई बड़ा पर्व आयोजित किया जा रहा है। आजकल यहां शूलिनी मेला चल रहा है और पूरे नगर को रंग बिरंगी रौशनी से सजाया और संवारा गया है। मेले को हर्षोल्लास मनाने के लिए बाजारों में मुफ्त में खाने पीने के स्टाल और छबीलें लगाई गई हैं। इस स्टालों और छबीलों को लगाने वालों का प्रयास रहता है कि वह अच्छे से अच्छा खाना मेले में घूमने आने वाले लोगों के लिए परोसें। जिला प्रशासन की ओर से मेला समिति मेले का आयोजन करवाती है। इसमें भारी संख्या में जन सहयोग लिया जाता है। मां शूलिनी की पालकी निकलने से पहले और तीन दिन तक यहां बाजारों में तरह तरह के स्टाल लगाए जाते हैं। जहां लोगों को निशुल्क भोजन करवाया जाता है। कुछ लोग गर्मी का मौसम होने के कारण शीतपेय और कीमती आइस्क्रीम तक लागों को निशुल्क वितरित करते हैं। खाने में जहां कुछ लोग दाल कड़ी चावल वितरित करते हैं वहीं कुछ श्रद्धालु यहां के पारंपरिक पकवान भी मेले के अवसर पर निशुल्क वितरण के लिए तैयार करवाते हैं। सभी का प्रयास रहता है कि उनके स्टालों में भारी भीड़ जमा हो और उनका तैयार किया गया खाना बच न जाए। नगर में कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं जहां मेले के तीनों दिन निशुल्क भंडारा रात दिन चलता है। यहां गौर करने लायक बात यह है कि इस मेले में तीन दिन तक लाखों लोग मेले का आनंद लेने आते हैं।     .   जारी...

 

मां शूलिनी की कृपा से सोलन को मानते हैं लोग स्‍वर्ग

     हिमाचल प्रदेश के विख्यात सोलन नगर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। अनुमान यह लगाया जाता है कि 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में ही कुछ दर्जन भर लोगों ने इस क्षेत्र में बसना शुरू किया। तभी से यह परंपरा रही है कि मां शूलिनी की कृपा से सोलन नगर को यहां रहने वाले लो स्वर्ग के समान मानते हैं। आज जब नगर की जनसंख्या करीब एक लाख हो चुकी है तभी भी यह परंपरा यहां कायम है। लोगों को प्रयास रहता है कि सोलन की पुरानी सुंदरता को किसी तरह बचा के रखा जा सके। जनगणना के पुराने आंकड़े इस बात का सबूत है कि सोलन नगर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। सन् 1800 के अंतिम 10 से 15 वर्ष पहले ही यहां कुछ लोगों ने बसना शुरू किया होगा। हलांकि ब्रिटिश छावनी और डायर मेकिनस का इतिहास इससे से पुराना है। लेकिन इनमें अधिकतर लोग अंग्रेज ही थे। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार इस नगर में सिर्फ 61 लोग ही रहते थे। कहते हैं यही 61 लोग मां शूलिनी के उपासक थे। जो इसे मां दुर्गा का अवतार भी मानते थे। अपने कुल सौ वर्ष के इतिहास में ही सोलन क्षेत्र ने अपनी पहचान भारत वर्ष में बनाई है। सन् 1971 के बाद मां शूलिनी के मेले में प्रशासन ने अपनी रुचि दिखानी शुरू की। मेले में कुश्तियों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी शामिल किया जाने लगा।     .   जारी...

 

कभी मां शूलिनी का मेला गंज बाजार में लगता था

     क्या आप जानते हैं कि 1950-60 के दशक में शूलिनी मेला गंज बाजार के दुर्गा मंदिर के पीछे सीधे बड़े खेतों में आयोजित किया जाता था। इस स्थान को अखाड़ा के नाम से जाना जाता था। समय के साथ शहर बड़ा होता चला गया। अब यहां मकान ही मकान बन गए हैं। इसलिए पिछले करीब पचास साल में इसका आयोजन ठोडो मैदान में होता है। समय के साथ मेला मनाने का अंदाज भी बदल गया है। किसी जमाने में किसान इस शूलिनी मेले में घी, शहद, ऊन अदरक व आलू व अन्य चीजें बेचने के लिए लाते थे और घर का अन्य सामान यहां से खरीदकर ले जाते थे। लोग तीन दिन तक यहीं ठहरते थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर यहां की परंपरागत नाटिका ‘करयाला’ देखकर आनंदित होते थे। उस समय यहां बिजली नहीं थी। इसलिए रौशनी के लिए रात भर भलेठी (बिहुल की छिली हुई टहनियां) जलाकर रखते थे। मेले से देर रात निकटवर्ती क्षेत्रों को लौटते समय वे भलेठी जलाकर रास्ते में रोशनी करते हुए चलते थे। दूर-दराज के क्षेत्रों से पैदल चलना अब बंद हो गया है। शूलिनी मेला में रियासतों के समय में राजा के विशेष आमंत्रित मेहमान, जिनमें अंग्रेजी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, नवाब व राजे-महाराजे शामिल होते थे। अब वह स्थान प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्यपाल जैसे गणमान्य व्यक्तियों ने ले लिया है। वह इस मेले, विशेषकर शोभायात्रा में जरूर शरीक होते हैं। बड़े-बूढ़ों के मुताबिक यह मेला उस समय भी आयोजित होता रहा, जब बघाट की राजधानी कोटी, जौणाजी और बोच हुआ करती थी।     .   जारी...

 

भंडारे वालों को विशेष हिदायतें, सफाई व्‍यवस्‍था बनाए रखें

     भंडारा आयोजित करने वालों से कहा गया है कि सफाई व्यवस्था को बनाए रखने के लिए वह भी अपने वालंटियर्स को भी तैनात करें। वरना उनसे अब सफाई शूल्क भी वसूल किया जाएगा। भंडारे लगाने वाले लोग खाना खिलाने के साथ साथ सफाई व्यवस्था को बनाए रखने को प्राथमिकता के आधार पर लें। यहां रहने वाले लोगों के लिए मेले के बाद पर्यावरण को बचाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है। हलांकि मेला आयोजन समिति ने पर्यावरण को बचाए रखने के लिए विशेष हिदायतें जारी की हैं। सोलन में सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी नगर निगम की है पर हर वर्ष उसके लिए यह एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आती है। जिला प्रशासन और सरकार को इसके लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है। शूलिनी मेले के दौरान जो लोग नगर में आते हैं वह यहां के पार्यवारण के प्रति चिंतित रहते हैं। कहा जाता है कि पर्यावरण को अच्छा बनाए रखने के लिए भी लोग मेले के दौरान एक काम जरूर करें, अनावश्यक रूप से गंदगी न फैलाएं। नगर निगम को आदेश दिए जाते हैं कि भंडारों से निकलने वाले कूड़े के ढेर को वह अधिक देर तक जमा न होने दें। साथ ही लोग भी बचे हुए खाने और पत्तलों को एक ही स्थान पर जमा करें। पीने के पानी और हाथ धोने के पानी को सोच समझ कर उपयोग करें। इस बात का खास ख्याल रखा जाए कि मेले के दौरान निकलने वाली गंदगी के कारण नगर की नालियां ब्लॉक न हों और पका हुआ अनाज नालियों में जमा होकर न सड़े। साथ ही ऐसे स्थानों को चिन्हित करके उन्हें साफ किया जाना चाहिए जहां किसी भी प्रकार की गंदगी जमा हो रही हो और उससे दुर्गंध आ रही हो।     .   जारी...

 

लापरवाह शिक्षकों की सूची तैयार की है सरकार ने

     पिछले दिनों जब स्कूलों के परीक्षा परिणाम निकले थे तो सरकार की ओर से कहा गया था कि जिन शिक्षकों की लापरवाही से परीक्षा परिणाम खराब निकले हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी। कहते हैं कि अब प्रदेश के सरकारी स्कूलों में खराब रिजल्ट देने पर करीब सौ शिक्षकों पर गाज गिरने वाली है। स्कूल शिक्षा निदेशालय ने जीरो व 25 फीसदी से कम रिजल्ट देने वाले टीजीटी व लेक्चरर की सूची लगभग तैयार कर दी है। अंतिम तौर पर उसे वेरिफाई किया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में सेवाएं देने के बावजूद खराब रिजल्ट देने वाले शिक्षकों को दूरदराज के क्षेत्रों में तबादला किया जाएगा। इसके अलावा अगले शैक्षणिक सत्र में खराब रिजल्ट पर शिक्षकों पर और भी सख्ती होगी। इसमें सस्पेंशन से लेकर डिमोशन तक हो सकता है हालांकि इसके लिए अतिरिक्त निदेशक की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई है, जिसमें 3 से 4 जिला उपनिदेशक शामिल किए गए हैं। यह कमेटी परिणामों की जांच करेगी, खराब परीक्षा परिणाम देने वाले शिक्षकों पर और क्या कार्रवाई की जा सकती है। जिन शिक्षकों के बीते कई वर्षों से अच्छे रिजल्ट हैं उनको और कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है कमेटी इस बारे सरकार को अपने सुझाव देगी। कमेटी को मामले पर जल्द रिपोर्ट देने को कहा गया है। खास बात यह है कि यह कमेटी बार-बार स्कूल में खराब रिजल्ट आने के कारणों पर भी कार्रवाई करेगी। कमेटी फील्ड में जाकर पता करेगी, इसमें सुधार किया जा सकते हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा है कि ऐसे स्कूल जहां परीक्षा परिणाम जीरो से 25 फीसदी के बीच रहे हैं।  .   जारी...

 
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शूलिनी मेला 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं